कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नही देखा,
निगाहे तो देखी पर दिल में उतर के नही देखा,
लोग समझते है में पत्थर हूँ,
अरे हम तो माँ है किसी ने आज तक छू के नही देखा।
दोनों की पहली चाहत थी,
दोनों एक दूसरे को टूट कर चाहा करते थे,
वो कसमे लिखा करती थी,
और हम वादे लिखा करते थे।
तेरी परछाई बन कर तेरे साथ रहने का इरादा करते हैं,
कभी छोड़ेंगे नही तेरा साथ तेरे साथ मरने का वादा करते है।
तुझे बड़ी शिद्दत से चाहा है मैंने, तुझे बड़ी मन्नतो से पाया है मैंने, तुझे भुलाने की मैं सोच भी नही सकता,
क्योंकि तुझे हाथो की लकीर से चुराया है मैंने।
मेरे आँखों के ख्वाब और दिल के अरमान हो तुम,
तुझसे ही मैं हूँ मेरी पहचान हो तुम,
मैं अगर जमी हूँ तो मेरा आसमान हो तुम,
सच कहूँ मेरे लिए मेरा जहां हो तुम।